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#Rj3471 " ghanni Khamma "
Pic credited by :)@vivekajeet .
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जानिऐ सही इतिहास एवं जानकारी ।
1 - परशुराम की शत्रुता सिर्फ महिष्मती के हैहय वंशी अर्जुन से थी । जिसने उसके पिता का वध किया था । परशुराम ने हैहय वंश के क्षत्रियो का विनाश किया था, न कि सभी क्षत्रियो का ।
2 - ये घटना भगवान राम से भी पहले की है, अगर उससे पहले ही क्षत्रिय खत्म हो गये होते । तो अयोध्या का सुर्यवंश, जिसमे दशरथ राम लक्ष्मण और मिथिला के जनक जैसे दुसरे क्षत्रिय वंश कैसे बचे रहे ? जबकि जब भगवान शिव का धनुष टूटा था तो वहां परशुराम के आने और उनके लक्ष्मण से वाद विवाद कैसे होता ?
3 - उसके बाद महाभारत काल में भी परशुराम का भीष्म और कर्ण को युद्ध की शिक्षा देने का जिक्र आता है। अगर पहले ही सभी क्षत्रिय खत्म हो गये होते, तो महाभारत काल में जो अनेक क्षत्रिय वंश थे वो कहाँ से आ गये ?
4 - उपरोक्त से स्पष्ट है कि परशुराम द्वारा क्षत्रियो के पूर्ण विनाश की कथा ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रियो पर श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए गढी है जो सत्य नही है ।
5 - परशुराम की शत्रुता जिस हैहय वंश से थी, उसका भी पूर्ण विनाश नही हुआ था । बल्कि सह्स्त्रर्जुन के पुत्र को महिष्मती की गद्दी पर बिठाया गया था । आज भी हैहय वंश के राजपूत बलिया जीले में मिलते हैं । हैहय वंश की शाखा कलचुरी राजपूत है, जो आज भी छतीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मिलते हैं। आप ही बताओ कि अगर सभी क्षत्रिय को परशुराम ने खत्म कर दिया होता तो रामायण और महाभारत के काल में क्षत्रिय वंश कहाँ से आ गये ?
यदि परशुरामजी के अवतार धारण करने का समय निर्धारित किया जाये । तो उन्होनें भगवान राम से बहुत पहले अवतार धारण किया था । और उस समय कार्तवीर्य के अत्याचारों से प्रजा तंग आ चुकी थी । कार्तवीर्य उस समय अंग आदि 21 बस्तियों का स्वामी था । परशुराम ने अवतार धारण करके कार्तवीर्य को मार दिया और इस संघ को जीतकर कश्यप ऋषि को दान में दे दिया । यह अवतारी कार्य पूरा करने के तुरंत बाद ही वे देवलोक सिधार गये ।
परशुराम के देवलोक चले जाने के बाद उसके अनुयायियों ने एक परम्परा पीठ स्थापित कर ली । जिसके अध्यक्ष को परशुराम जी कहा जाने लगा । यह पीठ रामायण काल से महाभारत काल तक चलती रही । इसलिय़े मूल परशूराम नही बल्कि परशूराम पीठ के अध्यक्ष सीता स्वंयंवर के अवसर पर आये थे । नहीं तो विष्णु के दो अवतार इक्ट्ठे कैसे होते । क्योंकि परशूरामजी को यह पता नही था, कि राम का अवतार हो गया है या नही । .
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#राजस्थान का इतिहास यहां के #राजपूतों के हजारों वीरता की सच्ची गाथाओं के लिए जाना जाता है।
उन्हीं गाथाओं मे से एक है #जैत_जी_चुण्डावत और #बल्लू_जी_शक्तावत की कहानी। मेवाड़ के #महाराणा अमर सिंह की सेना की दो राजपूत रेजिमेंट चुण्डावत और शक्तावत में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी। इस प्रतियोगिता को राजपूतों की अपनी आन,बान और शान के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देने वाली कहावत का एक अच्छा उदाहरण माना जाता है। #मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह की सेना में विशेष पराक्रमी होने के कारण चुण्डावत गौत्र के वीरों को ही युद्ध भूमि में अग्रिम पंक्ति में रहने का गौरव मिला हुआ था। वह उसे अपना अधिकार मानते थे। किन्तु #शक्तावत_गौत्र के वीर राजपूत भी कम #पराक्रमी नहीं थे। उनकी भी इच्छा थी की युद्ध क्षेत्र में सेना में आगे रहकर मृत्यु से पहला मुकाबला उनका होना चाहिए। उन्होंने मांग रखी कि हम #चुंडावतों से त्याग,बलिदान व शौर्य में किसी भी प्रकार कम नहीं है। युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार हमें मिलना चाहिए। सभी जानते थे कि युद्ध भूमि में सबसे आगे रहना यानी #मौत को सबसे पहले गले लगाना। मौत की इस तरह पहले गले लगाने की चाहत को देख महाराणा धर्म-संकट में पड़ गए। किस पक्ष को अधिक पराक्रमी मानकर युद्ध भूमि में आगे रहने का अधिकार दिया जाए?
इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने #एक_कसौटी तय की, जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि दोनों दल #उन्टाला_दुर्ग (किला जो कि बादशाह जहांगीर के अधीन था और फतेहपुर का नवाब समस खां वहां का किलेदार था) पर अलग-अलग दिशा से एक साथ #आक्रमण करेंगे व जिस दल का व्यक्ति पहले दुर्ग में प्रवेश करेगा उसे ही युद्ध भूमि में रहने का अधिकार दिया जाएगा। प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए दोनों दलों के रण-बांकुरों ने उन्टाला दुर्ग (किले) पर आक्रमण कर दिया। #शक्तावत वीर दुर्ग के फाटक के पास पहुंच कर उसे तोड़ने का प्रयास करने लगे तो चुंडावत वीरों ने पास ही दुर्ग की दीवार पर रस्से डालकर चढ़ने का प्रयास शुरू कर दिया। इधर शक्तावतों ने जब दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए फाटक पर हाथी को टक्कर देने के लिए आगे बढाया तो फाटक में लगे हुए लोहे के नुकीले शूलों से सहम कर हाथी पीछे हट गया। हाथी को पीछे हटते देख शक्तावतों का सरदार #बल्लू_शक्तावत,अद्भुत बलिदान का उदहारण देते हुए फाटक के शूलों पर सीना अड़ाकर खड़ा हो गया व महावत को हाथी से अपने शरीर पर टक्कर दिलाने को कहा जिससे कि हाथी शूलों के भय से पीछे न हटे।
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@Rajputana_Forever
महाराणा प्रताप जंयती की हार्दिक शुभकामनाएं
16जून
@banna_and_baisa_officail_page
Video edit by -:@ankush_raj_banna_mewar
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